الخميس، 8 فبراير 2018

.....من...أنت..... 
شعورٌ غريبۡ ينتابني..... 
تقززٌ... صمتٌ... غضبٌ 
لا أعلمۡ ما بي.... 
هروبٌ صارخٌ صامتۡ...... 
عجزٌ بكل شيء.... 
شللٌ يتملكني.... 
يدٌ مكتوفةٌ..... 
لا حيلة لها..... 
عينٌ تنظرُ باستغرابۡ..... 
ولكن..... 
لا تَستطيعُ التكلم.... 
او البوح... 
إنفجارٌ صاحبني.... 
كانفجار بركان..... 
يَتقيئُ حِممهُ..... 
بغضبٍ مدمر.... 
ولهيبٌ أَلسنتهُ... 
تمادتۡ وتعالتۡ السماء.... 
لم وماالذي يجري....
كل ما حولي.... 
كذبٌ وافتراءۡ.... 
لم يعد لي قوةٌ..... 
كلها تَبخرتۡ.... 
وذهبتۡ مع الريح...
قدماي تريدُ المشي.... 
ولكن إلى أَين.... 
لا تدري.... 
فقط تريدُ الهروب..... 
من زمنٍ مدمر..... 
آيلٍ للسقوط..... 
يُحيكُ الأَفخاخَ..... 
ويأۡكلُ الحَرامۡ..... 
ويلبسُ القِفطانۡ.... 
ويَمشي بِهدوء..... 
لِتمثيل الوِقار..... 
والضربَ على الأَوتارۡ..... 
ولِيسقِطَ الدموع..... 
في دور الحَزينۡ..... 
ويقفُ ويرى بِفُتور.... 
على من هُدم السَقف.... 
وتَحطمتۡ الرؤوسۡ.... 
من أنت أيها الإنسان..... 
هل أَنت ما زلت إِنساناً..... 
أَم خشبٌ وصَخور..... 
أَرجوكَ كُفّ يَدكَ عني..... 
فلقد نَفذ صَبري والحُروفۡ..... 
ولم يعد هناك كلماتاً..... 
تَبتلعُ السُكوتۡ..... 
ما الأمر... 
لقد تَعبَ الفُؤاد..... 
والجَسد والروح.....
ولم يَبقى لي سِوى..... 
الآه تَحرقُ القَلب..... 
وربٌ عَظيمُ الشَأۡنِ.... 
يَعلمُ ما في الصُدور..... 
---بقلمي---
...سهاد حقي الأعرجي...
8/2/2018 
الخميس

ليست هناك تعليقات:

إرسال تعليق

D-Mohmmed Jabbrya بقلم د. محمد جابريه 💗 سأجمع حقيبتي 💗 فاتنة انت   وكل ما فيك يثيرني حتى عندما تغضبين وح...